Monday, September 21, 2009

वहा चीख पुकार मची थी.

आज का दिन बड़ा दुखद रहा। नवरात्रों में जहा हर घर ने माओ ने ज्योत जलाई है, व्ही आज चार अभागिन माओ के घर में जल रही बालरूपी ज्योत बुझ गई। यमुना के घाट पर हर चीख पुकार मची थी। वो मंजर देखने वाले भी रोते दिखायी दिए। मीडिया वाले कैमरा लिए यहाँ वहा भाग रहे थे। हर तरफ़ मदद की दरकार थी।

फरीदाबाद में छोटा सा गाव है ददसिया। गाव के चार नोनिहाल सुबह ग्यारह बजे के आसपास घर से खेलने के लिए निकले थे। गाव के नजदीक से यमुना नदी बहती है। ज्यादा बरसात होने के कारन इन दिनों यमुना नदी अपने पुरे उफान पर है। ताजेवाला बाँध से करीब डेढ़ लाख क्यूसिक पानी छोडा गया था। ये चारो नोनिहाल कब यमुना नदी के घाट पर पर पहुच गए किसी को नही मालूम।

दोपहर एक बजे के आसपास किसी ग्रामीण ने गाव वालो को सुचना दी की चार बच्चे नदी में डूब गए है। सुचना के बाद गाव में कोहराम मच गया। सारा गाव घाट पर पहुच गया। घाट पर कलकल करते पानी की आवाज को दबाती चीख पुकार को सुनकर आस्मां थर्राता था। गाव के तैराक नदी में कूद पड़े। बच्चो को ढूँढ़ते रहे, लेकिन चारो नही मिले। दुखद पहलु यह भी था की घटना के चार घंटे बीत जाने के बाद भी मोके पर राहत पहुचाने वाला अमला नही था। गोताखोर चार घंटे देरी से पहुचे।
गाव में एक साथ चार माओ के लाल अकाल मौत के आगोश में चले गए। देर रात तक चारो को खोजने का काम चल रहा था। आम तोर पर जिस घाट पर शाम पाँच बजे तक वीरानी की खामोसी को नदी के तेज बहाव की कलकल ही तोडा करती थी, वहा रोते चिल्लाते लोगो का करून क्रंदन था।

में मोके पर था। गाव में उन चार बच्चो के घर भी गया। बच्चो की माओ को बिलखते देखा। उन माओ का दुख में इस कोरे कागज पर उतारने में असमर्थ हूँ। आहहह...... रे दर्द।

1 comment:

  1. अत्यंत दुखद. कुछ कह सकने में असमर्थ हूँ.

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