Sunday, September 13, 2009

हमारा पुलिस तंत्र ??????????????

मैं घर से निकलते वक्त रोजाना पत्नी को कहकर जाता हु, ख्याल रखना। जवाब में वो मुझे बस इतना ही कहती है, तुम भी ठीक रहना। मेरे और उसके कहने मैं जमीन आसमान सा फर्क नज़र आता है। उसके कहने के अंदाज से लगता है जैसे की मैं ख़ुद जन बुझ कर ग़लत रहता हू, सो उसकी हिदायत पर अमल करके ठीक से रहू।
खैर, छोड़ो। मेरे दिमाग में बहुत दिनों से एक उलझन सी उमड़ घुमड़ रही थी। सोचा ब्लॉग पर लिखू। मैं सोचता हू, हम सब आजाद है। इसीलिए हम इतना सोच पते है, लकिन दुखद पहलु यह है, की हम जितना सोच पाते है, कुछ पहलुयों पर उतना कर नही पाते।
ऐसा ही एक अहम् पहलु हमारा पुलिस तंत्र है, जो भ्रस्टाचार रूपी दीमक की चपेट मैं बुरी तरह घिर चुका है। इस तंत्र की हालत यही रही तो एक दिन ऐसा आयेगा जब हम और हमें बच्चे घर से बाहर तो क्या, घर के अंदर भी सुरक्षित नही रह पाएंगे। आज हम घर से निकलकर सुकून की साँस ले पारहे है तो वेह सिर्फ़ हमारा पुलिस तंत्र ही है। कड़ी मेहनत के बाद जब कभी इन प्रहरियों को घंटे दो घंटे का वक्त अर्रम के लिए मिलता है तो उनखी आँखों में नींद नही बल्कि अपने बच्चो की तस्वीर घूम रही होती है, जिनसे ये कोसो दूर हमारी सुरक्षा में तेनात है।
अब बात यह है की मेरे दोस्त की एक गाय को कोई चुरा ले गया। बच्चो को दूध पिलाने के लिए उसने यह गाय मेरे कहने पर एक गाँव से सात हज़ार रुपये में खरीदी थी। दो साल होने को आए, सब ठीक चल रहा था। मैंने भी दोस्त के घर गाय के दूध की टी खूब पी। गाय चोरी होने की की पहली ख़बर उसने मुझे ही बताई। मेरे कहने पर ही दोस्त भाई शिकायत करने चोकी पहुच गया। दो घंटे बाद उसका फ़ोन फ़िर आया, कहने लगा चोकी में पुलिस कर्मी बोल रहा है की, यहाँ आदमी खोने की रिपोर्ट तो दर्ज करने में हाड टूट जाते है, तुम गाय चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने चले आए। जायो यहाँ से।
मैंने दोस्त को दिलासा दी। मैंने कहा की तुम व्ही रुको में आता हू। करीब बीस मिनट का सफर तय करके मैं चोकी पहुच गया। बेचारा दोस्त मुह लटकाए चोकी के बाहर गेट पर खड़ा था। मैं अपने दोस्त को लेकर उसी मुंशी के पास पहुच जिसने दोस्त को वापस भेजा था। उत्तेजित होते हुए मैंने कहा की आप रिपोर्ट दर्ज क्यो नही कर रहे हो। मेरे लहजे को देख मुंशी ने कहा की ज्यादा गर्मी मत दिखा अभी निकल जायेगी। रिपोर्ट दर्ज करानी है तो इंचार्ज से मिल ले। मैं दोस्त को लेकर इंचार्ज से मिला। उसे सारी बात बताई। सुनकर इंचार्ज बहुत हंसा। उसकी हँसी भी बहुत कुटिल थी। इसी दोरान मैंने आवेश में यह भी कह डाला की, यदि मुंशी जी को सो पचास रुपये दे देते तो हमारी गाय की रिपोर्ट दर्ज हो जाती। इस बात को सुनकर इंचार्ज साब चुप हो गए।
उन्होंने मुझे समझने की कोशिश की। थोड़ा समझ कर बोले बेटा, क्या ये चोकी थाने यू ही चलरहे है , इन्हे चलाने के लिए रुपयों का जुगाड़ करना। जुगाड़ कैसे होता है? नही पता, विस्तार से बताता हू, कल को अपने अखबार में काढ देना। बहुत बड़ा बड़ा, इतना बड़ा बड़ा............... की साडी दुनिया को पता चले। यह कहते कहते इंचार्ज का चेहरा सखत होता चला गया। मैंने भी चुप्पी साध ली और सुनने लगा।
इनच्रार्ज - मैं जब पुलिस में भरती हुआ था। तब एक लाख रुपये रिश्वत दी थी। main bhi usulo wala tha, isiliye pehle nahi bataya, घरवालो ने नोकरी लग जाने के बाद बताया। छोड़ सकता तो नोकरी छोड़ भी देता। अब मैं सब इंस्पेक्टर बन गया हू। आउट ऑफ़ टार्न पमोसन मिली है। इस नोकरी मैं बहुत खुच देख लिया है। यहाँ जितने बड़े अधिकारी है, उतना बड़ा भ्रस्टाचार है। kuch अधिकारियो की तो chaddi बनियान भी seepahiyo को खरीद कर लानी पड़ती। यहाँ तक की सब्जी और घर के अन्य सामान की फटिक निचे वाले देखते है।
एक पुलिस चोकी पर हर महीने कागज, पेन, पेंसिल, मोबाइल, पेट्रोल, टेलीफोन, खाना खुराकी, लाangri की तनखा, सब चीज का इंतजाम इंचार्ज को करना पड़ता है। एक इंचार्ज क्या यह सब अपनी तनखा में से करेगा, उसे जनता की जेब में से nikalna पड़ता है।
पुलिस कर्मी को सरकार रंक के हिसाब से १५ से २० हज़ार रुपये तनखा देती है, १८ घंटे ड्यूटी लेती है, बच्चो से दूर रखा जाता है। जनता का ख़याल रखने वाले पुलिस कर्मी अपने ही बच्चो का ख्याल नही रख पाते। आम जनता से जयादा पुलिस कर्मियों के बच्चे बिगडे हुए होते है। अपराध होने पर मुकदमा पुलिस दर्ज करती है तो एक पूरी फाइल पर कम से कम ५०० रुपये का कागज खर्च हो जाता है। उस फाइल को जब अदालत में पेश किया जाता है तो पी पी ५०० रपये ले लेता है। कैदी को अदालत laane ले जाने का खर्च भी पुलिस कर्मी अपनी जेब से देता है। लावारिस लाश मील जाने पर उसके पोस्ट मार्टम हॉउस तक पंहुचाआने और तमाम तरह की फटिक पुलिस कर्मी के जिम्मे होती है।
जितना कुछ बताया है, उसमे से सरकार पुलिस को कुछ नही देती पतरकार साब। ये सब पुलिस कर्मी को जुगाड़ करना होता है। अगर ये सब सरकार से दिलवा सको तो ठीक है, जनता से रपये नही लेंगे, और एक बात- कुछ अफसर तो हमारे ऐसे भी है जो पुलिस कर्मियों से सीधे धन की मांग करते है।

ये सब बाते सुनते हुए में खामोश था।

इंचार्ज बोले जा रहा था - अब पत्रकार साब ये बता की जो हम ये सारा खर्च अपनी तनखा में से करने लगे तो हम अपनी लुगाई ने, माँ बाप ने, बच्चो ने गुरद्वारे मैं छोड़ आए, या फीर तुझे दे दे। चल पत्रकार साब इतनाही बहुत है, फिर कभी और........ अंदर की बात बताऊंगा।
....... अरे मुंशी इसकी गाय की चोरी की रिपोर्ट दर्ज कर दे और इस पे से रपये मत लियो।

jay ram ji ki.













1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण और प्यारी रचना लिखा है आपने!ahut Barhia...aapka swagat hai...


    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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